वो एक हमदर्द शहर था, पर हम सबको टेस्ट ट्यूब पर अलग-अलग टेम्प्रेचर पर रखकर परखा उसने । वो मोहोब्बतों के दिन थे, इसलिए कोई बात उतनी तकलीफ नहीं देती थी ।दिनभर के ग़म अज़ाब दोस्तों में बँट जाते थे। ऐसा नहीं था कि खुदा पर एतबार नही था, पर उस उम्र में ख़ुदा को कम याद किया जाता है । मुख़्तलिफ़ दोस्तों के पास मुख़्तलिफ़ शेड्स थे, जो आहिस्ता आहिस्ता आप में घुलने लगते थे । कुछ हॉस्टली लड़कों ने कहा मैं इन बेतरतीब पन्नो को बाँधकर रख दूं । मैं अलबत्ता इस कशमकश में रहा के अलग-अलग मिज़ाज के इन बेपरवाह लड़कों की डायरी कौन पढ़ेगा । क्योंकि हर सफहा तो अलग क़िस्सा कहेगा ।
फिर भी कुछ बेतरतीब से पन्ने इस उम्मीद में रख रहा हूँ, कि शायद किसी पन्ने में, किसी को अपनी शिनाख़्त मिल जाए ।

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