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बिश्वनाथ घोष का जन्म 26 दिसंबर 1970 को कानपुर में हुआ। वे अंग्रेज़ी के पत्रकार हैं और द हिन्दू अख़बार में  एसोसिएट एडिटर के रूप में कार्यरत हैं। इन दिनों कलकत्ता में रहते हैं। उन्होंने यात्रावृत्तांत की क्षेत्र में ख्याति हासिल की है और उनके नाम हैं अब तक पाँच किताबें दर्ज हैं, जिनमें चाय चाय  — जो कि हिंदी और मराठी में भी अनुवादित है — और एमलेस इन बनारस शामिल हैं।  आवाज़घर से प्रकाशित उनकि दो किताबें चर्चित हैं जिनमें अमेज़न बेस्ट सेलर `जियो बनारस, उनकी पहली कविताओं का संकलन है जो उन्होंने खुद हिंदी में रची हैं। हिंदी साहित्य की दुनिया में यह उनकी मज़बूत दस्तक है । उनका दूसरा संकलन है `टेढ़ी मेढ़ी लकीरें, विभाजन रेखा पर बुनी कविताएं।

Bishwanath Ghosh

बिश्वनाथ घोष का जन्म 26 दिसंबर 1970 को कानपुर में हुआ। वे अंग्रेज़ी के पत्रकार हैं और द हिन्दू अख़बार में  एसोसिएट एडिटर के रूप में कार्यरत हैं। इन दिनों कलकत्ता में रहते हैं। उन्होंने यात्रावृत्तांत की क्षेत्र में ख्याति हासिल की है और उनके नाम हैं अब तक पाँच किताबें दर्ज हैं, जिनमें चाय चाय  — जो कि हिंदी और मराठी में भी अनुवादित है — और एमलेस इन बनारस शामिल हैं।  आवाज़घर से प्रकाशित उनकि दो किताबें चर्चित हैं जिनमें अमेज़न बेस्ट सेलर `जियो बनारस, उनकी पहली कविताओं का संकलन है जो उन्होंने खुद हिंदी में रची हैं। हिंदी साहित्य की दुनिया में यह उनकी मज़बूत दस्तक है । उनका दूसरा संकलन है `टेढ़ी मेढ़ी लकीरें, विभाजन रेखा पर बुनी कविताएं।

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SaleHotNew

Jiyo Banaras

Original price was: ₹260.00.Current price is: ₹199.00.

बनारस सिर्फ़ एक नगरी मात्र नहीं। बनारस सिर्फ़ एक संस्कृति मात्र भी नहीं। बनारस एक इमोशन है, एक भाव है। क़तई ज़रूरी नहीं की यह भाव धार्मिक ही हो। हाँ इसका झुकाव अक्सर आध्यात्म की ओर होता है। मतलब यह कि जब हम इस सवाल का जवाब ढूँढने निकलते हैं कि बनारस क्या है, हम अपने आप से कई बार यह भी पूछते हुए पाए जाते हैं कि हम कौन हैं ? मानो बनारस का होना और हमारा होना एक तरह से जुड़ा हो। जियो बनारस इसी कनेक्शन को टटोलता है और नतीजा यह कि पाठक अपने आप को हर एक कविता में पाते हैं।

Tedhi Medhi Lakeeren

270.00

जैसे भारत की आज़ादी को समझने के लिए उसके विभाजन के बारे में जानना ज़रूरी है, उसी प्रकार विभाजन को अगर सही अर्थों में जानना है तो सीमा रेखा की यात्रा बहुत ज़रूरी है, हालाँकि आम आदमी के लिए उस रेखा पर घूमना-फिरना —  फिर चाहे पंजाब हो या बंगाल न तो आसान है, न ही हमेशा संभव, फिर भी कवि ह्रदय बिश्वनाथ घोष की इच्छा शक्ति ने इस यात्रा को संभव बनाया। उन्होंने बटंवारे के बाद के दर्द को, अर्थ को, त्रासदी, निरर्थकता और विवशता को, इन कविताओं के ज़रिए जिया है, जो उन्होंने सीमा रेखा पर अपनी यात्राओं के दौरान रची हैं। इसी वजह से यह कविताएं और भी महत्वपूर्ण हो जाती हैं।