औपन्यासिक स्वरूप के कारण संस्मरणों से संपन्न इस किताब में मेरी संगिनियों या अंतरंग स्त्रियों को इतना अधिक नहीं छिपाया गया है कि उन्हें पहचानना मुश्किल हो जाए, क्योंकि मैं भी चाहता हूं कि मुझे और उन्हें बरसों से जानने वाले पाठक हमारे साथ सहज रहें और नए पाठक भी स्त्री पुरुष की अंतरंगताओं या नज़दीकियों से निकले जीवन के बहुत सारे अनोखे आयामों को विस्मय से देखें और जानें। इसीलिए मैंने पूर्व प्रकाशित संस्मरणों में से उन कुछ अनिवार्य संस्मरणों को भी औपन्यासिकता में पिरो दिया है, जो पहले मेरे बहुत कम पाठकों तक पहुँच पाए थे।
क़रीब एक सौ स्त्रियों में से कुछ ऐसी स्त्रियां भी इस किताब में मौजूद हैं, जिनके साथ की मेरी कुछ अंतरंगताओं अथवा निकटताओं को निजता के घूँघट में रखना अनिवार्य था। मेरे साथ उनकी भीतरी या बाहरी यात्राओं के ज़रिये विकासमान स्त्री और पुरुष के नैसर्गिक, अभिन्न और अपरिहार्य नातों या रहस्यों को सामने लाना ही मेरा मंतव्य है।
अशेष

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