फ़र्ज़ करो,
तुम यह जान चुके हो ;
कि कल तुम्हारे जीवन का अंतिम दिन है.
क्या करोगे दिन भर आज ?
बीमा की आख़िरी किस्त चुकाओगे या शराब पियोगे ?
मंदिर जाओगे या तलत महमूद को सुनोगे –
ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो
वक़ील को बुलाकर वसीयत लिखोगे
या उस लड़की को पत्र लिखोगे;
जिसके साथ तुमने छल किया था ?
उस आदमी को ढूँढ़ोगे,
जिससे पिछले अपमान का बदला लेना बाक़ी है
या उस दोस्त का फ़ोन नम्बर तलाशोगे;
जिससे ताश के खेल में झगड़ने के बाद बरसों से बातचीत बंद है ?
कार को सर्विसिंग पर देने जाओगे,
या ड्राइवर को दोगे उसकी बेटी की शादी के लिए एडवांस ?
बैठक की खिड़की का काँच तोड़ने वाले लड़के के कान उमेठने जाओगे प्लेग्राउंड तक
या हफ़्ते भर से दराज में छुपा रखी गेंद उसे वापस करोगे ?
सोच लिया कि क्या करोगे ?
बस ! इतने के लिए ही मैं कहती हूँ —
कि मृत्यु,
दरअसल मृत्यु,
जीवन की सबसे मानवीय घटना है।