82
0

पूरे का पूरा आकाश घुमाकर बाज़ी देखी मैंने

82
0

पूरे का पूरा आकाश घुमाकर बाज़ी देखी मैंने

काले घर में सूरज चलकर तुमने शायद सोचा था

मेरे सब मोहरे पिट जायेंगे

मैं एक चराग़ जलाकर रौशनी कर ली

अपना रस्ता खोल लिया

तुमने एक समंदर हाथ में लेकर मुझपे ढेल दिया

मैंने नूह की कश्ती उस पर रख दी

काल चला तुमने और मेरी जानिब देखा

मैंने काल को तोड़के लमहा लमहा जीना सीख लिया

मेरी खुदी को मारना चाहा

तुमने चन्द चमत्कारों से

और मेरे एक प्यादे ने चलते चलते

तेरा चाँद का मोहरा मार लिया

मौत की शह देकर तुमने समझा था अब तो मात हुई

मैंने जिस्म का खोल उतार के सौंप दिया

और रूह बचा ली

पूरे का पूरा आकाश घुमाकर

अब तुम देखो बाज़ी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *