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वे हार जाएँगे

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वे झूठ बोलेंगे
वे चीख़कर झूठ बोलेंगे
वे लगातार चीख़कर लगातार झूठ बोलेंगे

तुम सच कहने के लिए हकलाओगे
बेबस महसूस करोगे
और हैरान होकर चुप हो जाओगे

तुम समझ नहीं पाओगे
कि इस तरह लगातार
चीख़-चीख़कर कोई झूठ कैसे बोल सकता है

पर तुम हारोगे नहीं।

वे हार जाएँगे
क्योंकि उनका सब झूठ है
उनका चीख़ना भी झूठ है
अपने झूठ पर उनका भरोसा भी झूठ है

अपने झूठ को सच साबित करने के लिए
वे बंदूक़ चलाएँगे
लेकिन फिर भी हारेंगे

वे झूठे नारे लगाएँगे
और सच्चे सैनिकों का खोखला अभिनय करते हुए
सच के दुर्बल वीरों पर लोहे की लाठियाँ लेकर टूट पड़ेंगे
लेकिन फिर भी हारेंगे

वे अपनी आनुवंशिक कुंठाओं का मुकुट
सिर में खोंसकर
हाथ में शिश्न का चाक़ू थामकर
सच की वीरांगनाओं के पवित्र कोनों को
नेस्तनाबूद कर देंगे
लेकिन फिर भी हारेंगे

वे नक़ाब पहनकर आएँगे
और खुले आसमान तले
निहत्थे खड़े सच की तरफ़
अपनी गली हुई आत्मा के बदबूदार चिथड़े फेंकेंगे
पेट्रोल में भिगोकर
माचिस की तीली दिखाकर
लेकिन फिर भी हारेंगे

वे सब तरफ़ फैला देंगे
कि वे जीत गए
लेकिन फिर भी हारेंगे

जीतेंगे हम ही
क्योंकि हम सच हैं
हमारी बेबसी भी सच है
हमारी हैरानी भी सच है
हमारा छटपटाकर चुप हो जाना भी सच है
हमारी चोट से फूटा आर्तनाद भी सच है
हमारे घाव से निकला लहू भी सच है
हमारी आँख से टपका आँसू भी सच है
हमारे माथे से निकली लपट भी सच है
हमारा हार जाना भी सच है
और हारकर जीतने के लिए
वापस खड़े होना भी सच है।

आर. चेतन क्रांति
WRITEN BY

आर. चेतन क्रांति

आर. चेतनक्रांति (जन्म: 1968) हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि हैं। उनके दो कविता-संग्रह ‘शोकनाच’ और ‘वीरता पर विचलित’ शीर्षक से प्रकाशित होकर कविता-विमर्श के केंद्र में रहे हैं। वह दिल्ली में रहते हैं। उनसे rchetankranti@gmail.com पर बात की जा सकती है।

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