काव्य

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बारूद

दुनिया को तहस नहस कर डालने के लिए जितना बारूद ज़रूरी है उससे रत्ती भर ज़्यादा ही था मेरी छाती के अंदर मेरे सिर पर लगा होता कम-अज़-कम सात हत्याओं का पाप एक लीचड़ अफ़सर, एक लुच्चा टीचर, एक लम्पट लीडर, एक लबार आशिक़, एक लिज्झड़ दोस्त और गुलाब के दो मासूम फूल सब बच […]

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नए सफ़र का जो एलान भी नहीं होता

नए सफ़र का जो एलान भी नहीं होता तो ज़िंदा रहने का अरमान भी नहीं होता तमाम फूल वही लोग तोड़ लेते हैं वो जिन के कमरों में गुल-दान भी नहीं होता ख़मोशी ओढ़ के सोई हैं मस्जिदें सारी किसी की मौत का एलान भी नहीं होता वबा ने काश हमें भी बुला लिया होता […]

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तेरा चुप रहना मेरे ज़ेहन में क्या बैठ गया

तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया यूँ नहीं है कि फ़क़त मैं ही उसे चाहता हूँ जो भी उस पेड़ की छाँव में गया बैठ गया इतना मीठा था वो ग़ुस्से भरा लहजा मत पूछ उस ने जिस जिस को भी जाने का कहा […]

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वीरता पर विचलित

युद्ध करने वाला सिर्फ युद्ध करेगा युद्ध से भागने वाला जायेगा, बसाएगा एक शहर युद्ध करने वाला सिर्फ युद्ध करेगा युद्ध से आँख बचाकर जानेवाला लेकर आएगा पता एक सुन्दर घाटी का युद्ध करने वाला सिर्फ युद्ध करेगा युद्ध को पीठ दिखानेवाला पीछे पलटकर देखेगा जीवित हहराता समुद्र मनुष्यता का

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शांति वार्ता

और अंत में हमने इंसानियत का हवाला दिया हमें यक़ीन था कि अब वह निरुत्तर हो जाएगा लेकिन वह ठठाकर हँसा इंसानियत उसके लिए सबसे कमज़ोर तर्क था सबसे हास्यास्पद। हमने बहुत अरमान से उसे तानाशाह कहा कि उसकी आँख नीची होगी पर उसकी छाती और फूल गई यह उसके लिए उपाधि थी। हमने चिल्लाकर […]

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वे हार जाएँगे

वे झूठ बोलेंगे वे चीख़कर झूठ बोलेंगे वे लगातार चीख़कर लगातार झूठ बोलेंगे तुम सच कहने के लिए हकलाओगे बेबस महसूस करोगे और हैरान होकर चुप हो जाओगे तुम समझ नहीं पाओगे कि इस तरह लगातार चीख़-चीख़कर कोई झूठ कैसे बोल सकता है पर तुम हारोगे नहीं। वे हार जाएँगे क्योंकि उनका सब झूठ है […]

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पूरे का पूरा आकाश घुमाकर बाज़ी देखी मैंने

पूरे का पूरा आकाश घुमाकर बाज़ी देखी मैंने काले घर में सूरज चलकर तुमने शायद सोचा था मेरे सब मोहरे पिट जायेंगे मैं एक चराग़ जलाकर रौशनी कर ली अपना रस्ता खोल लिया तुमने एक समंदर हाथ में लेकर मुझपे ढेल दिया मैंने नूह की कश्ती उस पर रख दी काल चला तुमने और मेरी […]

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मृत्यु पर्व

फ़र्ज़ करो, तुम यह जान चुके हो ; कि कल तुम्हारे जीवन का अंतिम दिन है. क्या करोगे दिन भर आज ? बीमा की आख़िरी किस्त चुकाओगे या शराब पियोगे ? मंदिर जाओगे या तलत महमूद को सुनोगे – ऐ दिल मुझे ऐसी जगह ले चल जहाँ कोई न हो वक़ील को बुलाकर वसीयत लिखोगे […]

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सितोलिया

तीसरी बार तब, जब दिया गया उसका हाथ किसी अजनबी के हाथ में रखा गया हथेली पर आटे का गोला कन्या दान था या पिंड दान हथेलियों पर छूट गई हल्दी भर याद है उसे चौथी बार तब, जब हाथों में आने लगे कभी अचानक गर्म कड़ाई तपते तवे के निशान फिर हाथ चलते रहे […]

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तैयार रखो नाव – जियो बनारस

एक कलश भर अस्थि बस यही हमारी हस्ती निशानी छोड़ जाओगे काग़ज़ी जो धुल जाएगी,घुल जाएगी काल के बहते पानी में तो क्यों हो परेशान जब बह ही जाना है तो क्यों जमाना पाँव बस तैयार रखो नाव   बिश्वनाथ घोष जियो बनारस

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