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सितोलिया

तीसरी बार तब, जब दिया गया उसका हाथ किसी अजनबी के हाथ में रखा गया हथेली पर आटे का गोला कन्या दान था या पिंड दान हथेलियों पर छूट गई हल्दी भर याद है उसे चौथी बार तब, जब हाथों में आने लगे कभी अचानक गर्म कड़ाई तपते तवे के निशान फिर हाथ चलते रहे […]

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मेरे हिस्से की बारिश

उस रोज भी शदीद बारिश थी ,सुबह के तीन बजे थे , रात कहना शायद ज्यादा मुनासिब होगा। एयरपोर्ट जाने से पहले मै तुम्हारे हॉस्टल आयी थी ,पापा से मैंने हॉस्टल चलने को कहा तो वे कुछ बोले नहीं थे , ना उन्होंने कुछ पूछा था। सीधे गाडी मोड़ दी थी। अचानक यूँ उस वक़्त […]

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प्राण की पतंग और श्वास का माझा

इधर कोविड विज़िट के बाद तन में हज़ार बरसों की थकान भर गयी थी। कोई चोट नहीं जो किसी मरहम से सूख जाए, न ही कोई पीड़ा या ताप, जो दवा-गोली के असर से कुछ कम हो रहे। बस थकान, जैसे न जाने कितने प्रकाशवर्षों से पैदल चल रही होऊँ। और इसके ठीक उलट भीतर […]

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हमारे यहाँ भी एक शख्स है “गुलज़ार”

वो बिमल रॉय ,असित सेन ,ऋषिकेश मुखर्जी बासु भट्टाचार्य की स्कूल की पैदाइश था । जिसका अपनी स्टोरी टेलिंग मेथड था । गीत लिखने आया लड़का ,कहानियों से वाकिफ था ।वो कहानियों की नब्ज़ पकड़ता उन्हें टटोलता फिर उनमें खुश्बू डाल देता । कहते है एक ही कहानी को अगर चार लोग कहे सब अपने […]

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इक आग का दरिया है

( ट्रांसफ़ॉर्मेशन एन्ड लॉ ऑफ़ फ़्री विल ) भिक्षु अहिंसक भिक्षाटन के लिए निकले हुए थे। सुनसान वन मार्ग में कराहने की आवाज़ आती थी। आगे बैलगाड़ी में प्रसव पीड़ा से एक स्त्री जूझ रही थी। परिवार के लोग निकट थे। वैद्य के पास ले जाते हुए अचानक इस स्त्री की स्थिति बिगड़ने लगी। उसकी […]

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विदा

‘कुछ तार कभी टूटते नहीं हैं. कितनी भी कोशिश क्यों न कर लें. उन्हें लाख आश्वासन भी क्यों न दें कि अभी तोड़ रहे हैं, पर बाद में गाँठ बांधकर फिर से जोड़ सकते हैं, पर वह मानते नहीं हैं. सारे तनाव, खिंचाव के साथ वह भीतर कहीं बहुत महीन त्रासदी के साथ जुड़े रहते […]

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वसीयतें

हमारे हॉस्पिटल के बाहर टेंट है ,मै जब भी उन्हें देखता हूँ ठहर जाता हूँ वो एक वर्ल्ड क्लास हॉस्पिटल से मिस मैच कोई अलग टुकड़े नजर आते है। मुश्किल वक़्त में आपके काम करने के तरीके अलग होते है। इससे पहले मैंने टेंट में 2014 में साउथ अफ्रीका में इबोला ऑउटब्रेक में काम किया […]

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तैयार रखो नाव – जियो बनारस

एक कलश भर अस्थि बस यही हमारी हस्ती निशानी छोड़ जाओगे काग़ज़ी जो धुल जाएगी,घुल जाएगी काल के बहते पानी में तो क्यों हो परेशान जब बह ही जाना है तो क्यों जमाना पाँव बस तैयार रखो नाव   बिश्वनाथ घोष जियो बनारस

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